#OpenPoetry बागी सा परिंदा हूं मैं..अक्सर खुद से ही शर्मिंदा हूं मैं.. खुदा ने जो बनाई बेमिसाल सी कुदरत.. हां वहां का बाशिंदा हूं मैं .. कब जाना ..कब समझ सका दर्द तेरे .... ए मेरे दोस्त बेजुबान.. हरगिज़ नहीं इंसान रहा..लालच भरा दरिंदा हूं मैं .. जंगल बचाओ ...मंगल बनाओ..