Nojoto: Largest Storytelling Platform

सेस गनेस महेस दिनेस,सुरेसहु जाहि निरंतर गावै ! जाह

सेस गनेस महेस दिनेस,सुरेसहु जाहि निरंतर गावै !
जाहि अनादि अनंत अखण्ड,अछेद अभेद सुबेद बतावै !!
नारद् से सुक व्यास रटें,पचिहारे तउ पुनि पार न पावै !
ताहि अहीर की छोहरियाँ,छछिया भर छाछ पे नाच नचावै !! 💓🐇#बृजधाम☕#अध्यात्म☕💕#शिक्षा🐦#संस्कार🦃🍫🍫🍮🌧#ज्ञान🌛😂😍😘😚😙☕
:💕😀😍
हम सारी दुनिया को गीता का ज्ञान बांट रहे हैं, तब हमारे बच्चे क्यों इससे वंचित हैं? जब महाभारत का युद्ध हुआ, गीता का ज्ञान दिया, तब कौनसा धर्म था, जो आज गीता को साम्प्रदायिक कह सकता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए उपयोगी शिक्षा का चार्टर है। ‘ममैवांशो जीव लोके..’ कह रहे हैं कृष्ण। क्या इसमें किसी सम्प्रदाय विशेष की ओर इशारा है? हम राजनीति न करें। सबको निर्माण योग्य बनाना है। सबको हित-अहित का बोध रहना ही चाहिए। तन-मन-धन के साथ चेतना के स्तर पर भी जीना आना चाहिए। आज के बुद्धिजीवी तो शब्दों को पकड़ते हैं। भावों की समझ कहां है!
:☺🐦💕😀😍
विचारों में और वाणी में एक तारतम्य है। वाणी वैखरी रूप में अल्पजीवी है। बोलते ही लुप्त हो जाती है। मंत्र रूप में शक्तिशाली साधन है निर्माण का। हम सब ध्वनि से बने हैं। जो बोलते हैं, स्वयं भी सुनते हैं। शुद्ध मन, शुद्ध वाणी, शुद्ध (स्वस्थ) शरीर। भाषा ज्ञान नहीं, माध्यम है।
:☺😊💓💕🐦
शिक्षा से गुरु खो गया। व्यक्तिगत जो जुड़ाव या संवेदना का स्तर था, वह नहीं रहा। पढ़ाई के विषय गुरु नहीं बच्चे तय करते हैं। सारा ढांचा बौद्धिक स्तर का रह गया। लक्ष्य सुख है। कौन सिखाता है कि हमारा अस्तित्व पंचभूतों से निर्मित है और संचालित भी वहीं से होता है। हमारा पिता सूर्य है। हम शरीर नहीं आत्मा हैं। शरीर माता-पिता देते हैं। आत्मा आकर इसमें रहता है। माता-पिता स्थूल शरीर का निर्माण करते हैं। पंचाग्नि का पांचवां पड़ाव होते हैं।
💕🌧☁🐦💓🍫🦃🍫🍫🍫🍵🍵🍵🍵🍀🍂🐿
सेस गनेस महेस दिनेस,सुरेसहु जाहि निरंतर गावै !
जाहि अनादि अनंत अखण्ड,अछेद अभेद सुबेद बतावै !!
नारद् से सुक व्यास रटें,पचिहारे तउ पुनि पार न पावै !
ताहि अहीर की छोहरियाँ,छछिया भर छाछ पे नाच नचावै !! 💓🐇#बृजधाम☕#अध्यात्म☕💕#शिक्षा🐦#संस्कार🦃🍫🍫🍮🌧#ज्ञान🌛😂😍😘😚😙☕
:💕😀😍
हम सारी दुनिया को गीता का ज्ञान बांट रहे हैं, तब हमारे बच्चे क्यों इससे वंचित हैं? जब महाभारत का युद्ध हुआ, गीता का ज्ञान दिया, तब कौनसा धर्म था, जो आज गीता को साम्प्रदायिक कह सकता है। प्रत्येक मनुष्य के लिए उपयोगी शिक्षा का चार्टर है। ‘ममैवांशो जीव लोके..’ कह रहे हैं कृष्ण। क्या इसमें किसी सम्प्रदाय विशेष की ओर इशारा है? हम राजनीति न करें। सबको निर्माण योग्य बनाना है। सबको हित-अहित का बोध रहना ही चाहिए। तन-मन-धन के साथ चेतना के स्तर पर भी जीना आना चाहिए। आज के बुद्धिजीवी तो शब्दों को पकड़ते हैं। भावों की समझ कहां है!
:☺🐦💕😀😍
विचारों में और वाणी में एक तारतम्य है। वाणी वैखरी रूप में अल्पजीवी है। बोलते ही लुप्त हो जाती है। मंत्र रूप में शक्तिशाली साधन है निर्माण का। हम सब ध्वनि से बने हैं। जो बोलते हैं, स्वयं भी सुनते हैं। शुद्ध मन, शुद्ध वाणी, शुद्ध (स्वस्थ) शरीर। भाषा ज्ञान नहीं, माध्यम है।
:☺😊💓💕🐦
शिक्षा से गुरु खो गया। व्यक्तिगत जो जुड़ाव या संवेदना का स्तर था, वह नहीं रहा। पढ़ाई के विषय गुरु नहीं बच्चे तय करते हैं। सारा ढांचा बौद्धिक स्तर का रह गया। लक्ष्य सुख है। कौन सिखाता है कि हमारा अस्तित्व पंचभूतों से निर्मित है और संचालित भी वहीं से होता है। हमारा पिता सूर्य है। हम शरीर नहीं आत्मा हैं। शरीर माता-पिता देते हैं। आत्मा आकर इसमें रहता है। माता-पिता स्थूल शरीर का निर्माण करते हैं। पंचाग्नि का पांचवां पड़ाव होते हैं।
💕🌧☁🐦💓🍫🦃🍫🍫🍫🍵🍵🍵🍵🍀🍂🐿