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कभी कभी रात, गुज़रती नहीं है एक भारी चट्टान सी...

कभी कभी रात, गुज़रती नहीं है 
एक भारी चट्टान सी...
खड़ी रहती है आँखों में 
बेचैनियां टहलती हैं सीने में 
एक शरारती झपकी का चकमा 
और आँखे ठहर जाती हैं इंतज़ार में 
उसी चट्टान के पीछे खड़ी नींद 
आँखों में आने से, डरती है 
नींद को, दब जाने का डर है, शायद 
उस चट्टान के नीचे 
जिसकी आगोश में बस 
अँधेरा बसर करता है 
नींद भी जीना चाहती है 
आँखों में आकर 
इक रात का जीवन 
मगर कभी कभी 
रात गुज़रती नहीं है 
नींद खड़ी झांकती है 
चट्टान की ओट से 
नहीं आती फिर भी 
नींद कोई ख्वाब हो गयी हो जैसे
# मनु

©'मनु' poetry -ek-khayaal
  #Poetry #Night