तुम "कवि" हो -------------------- तुम "कवि" हो, तुम्हें इतना जल्दी कोई समझ नहीं पाएगा ! जितना, तुम्हें जानने की कोई कोशिश करेगा, उतना ही खुद को खुद से दूर होता पाएगा ! तुम्हारी कल्पना में अगर डूब गया कोई, तो उसमें वो कभी तैर नहीं पाएगा ! ख़ामोशी उसकी बातों में नजर नहीं आएगी, क्योंकि, उसमें हर वक़्त तू उम्मीद नई जगती पाएगा ! दिखने में वो सब जैसा ही है बातें उसकी, किसी से अलग नहीं पर फिर भी, तू अलग ही रूप उसका देख पाएगा ! शांती उसे प्रिय होती, क्या महसूस तुझे कोई कर पाएगा ! नफरत का सैलाब कहाँ हमेशा ही उसमे अब, भरपूर तू मोहब्बत पाएगा ! तुम "कवि" हो, बेशक तुम्हें कोई समझ नहीं पाएगा ! ~Akshita Jangid तुम "कवि"तुम "कवि" हो -------------------- तुम "कवि" हो, तुम्हें इतना जल्दी कोई समझ नहीं पाएगा ! जितना, तुम्हें जानने की कोई कोशिश करेगा,