अजीब दास्तां है इस दुनिया के रस्म की, मेरे समझ से तो बिलकुल परे है जिसके पास है जितनी महंगी मूर्ति, वो उतनी बड़ी झोली फैलाए खड़े है लोग अपनी ख्वाहिशों को लिस्ट मैं, थोड़ा और बस थोड़ा और जुटाए चले है जिसे लगी थी भूल जोर की, उसे अन्न का एक दाना भी न मिला और लोग पत्थर की मूरत पे सोने का मिखोटा चढ़ाए चल है किसी के घर चूल्हा न जला, पकाए भी तो क्या अन्न कहा था तो कोई चप्पनभोग चढ़ाए चले है किसी का घर था अंधेरे से भरा, तो कोई चिरागो तले दिया जलाए चले है बड़ी अजीब दास्तां है दुनिया की रस्म की, मेरे समझ से तो बिलकुल परे है क्यूं ठंड से बिलखते लोगो को भुला जाते है लोग, क्यूं मजारों पे चादर चढ़ा जाते है लोग क्यूं बेसहारों का दर्द किसी को नही दिखता क्यों भगवान की तरह दुख भी बाजारों में नही बिकता क्या महंगी मूर्ति में ज्यादा और सस्ती में दुओं का असर कम होता है क्या बेचने वालों की दुआ कमजोर, और खरीदने वालों की दुआ में दम होता है इन रंगों का क्या कसूर इन रंगों का क्या कसूर आखिर क्यू लाल और हरे में इतने भेद खरे है अजीब दास्तां है दुनिया के रस्म की, मेरे समझ से तो बिलकुल परे है क्या सचमे भूखे रहने से मन्नतें पूरी होती है तो क्यू उस गरीब की जरूरतें पूरी नहीं होती क्या गरीब की दुआ में वाकई दम होता है तो क्यों उस्कीखुशियों का सेहरा इतना कम होता है क्या वहाँ भी सस्ती और महंगी मूर्ति का हिसाब होता है क्या वहाँ भी कोई फकीर तो कोई नवाब होता है क्या वहां भी महंगी और सस्ती चादर चढ़ाने का बवाल होता है या किसको उढ़ाई वो चादर, ये सवाल होता है बगल में कोई भूखा है, इस बात का इल्म भी नही है और अनदेखे ईश्वर को लुभाए चले है अजीब दास्तां है दुनिया के रस्म की, मेरे समझ से तो बिलकुल परे है जिस पास है जितनी मंहगी मूर्ति, वो उतनी ही बड़ी झोली फैलाए खड़े है ©MD Shahadat #mdshahadat #dastaan #duniya #rasm #dharm #poem #Drops #Murti