जी का ये जंजाल बन गया, इक अजब सा सवाल बन गया, देखते ही देखते कोरोना काल एक विकराल बन गया। किसकी गलती का ये परिणाम है, जो झेलता खासो आम है, ये रौद्र रूप प्रकृति का है, या फिर मानव निर्मित एक जाल है, रिश्ते नाते,बंधु बांधव सबसे दूर हम हो गए, छिप छिपाकर रहने को मजबूर हम हो गए। कैसी ये साजिश बुनी कैसा ये जहर फैलाया है, अनदेखा सा कोई शत्रु काल बनकर आया है। ये चीन की है चाल कोई, या समय का चक्र है, या फिर कहें कि प्रकृति की दृष्टि हमपर वक्र है। चारो तरफ हाहाकार है,बस दर्द की चीख पुकार है, कोई ना कुछ भी कर सका, बस दूरियां हथियार है। ना जाने कब वो दिन आएँगे, जब पहले सा मुस्कुरायेंगे, साथ होगी मस्त यारो की टोली, मिलकर त्योहार मनाएंगे, प्यार से सबको गले लगाकर गर्मजोशी से हाथ मिलाएँगे, बिना किसी डर और शंका के लहलहाते खेतो मे दौड़ लगाएंगे। बस यही आशा है मन मे बस यही विश्वास है, एक रोज सुकूँ होगा जहाँ मे इतनी सी ही आस है। नेहा गुप्ता #आजकाविचार #सच्चाई #कोरोना_को_हराना_है