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ज़न्नत *परीक्षा संसार की।* *प्रतीक्षा परमात्मा की।*

ज़न्नत *परीक्षा संसार की।*
*प्रतीक्षा परमात्मा की।*
*और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।*
                      
*लेकिन हम*

*परीक्षा परमात्मा की।*
*प्रतीक्षा सुख की।*
*और समीक्षा दूसरों की करते हैं।*
ज़न्नत *परीक्षा संसार की।*
*प्रतीक्षा परमात्मा की।*
*और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।*
                      
*लेकिन हम*

*परीक्षा परमात्मा की।*
*प्रतीक्षा सुख की।*
*और समीक्षा दूसरों की करते हैं।*
kaushalkishormis3867

KK Mishra

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