ज़न्नत *परीक्षा संसार की।* *प्रतीक्षा परमात्मा की।* *और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।* *लेकिन हम* *परीक्षा परमात्मा की।* *प्रतीक्षा सुख की।* *और समीक्षा दूसरों की करते हैं।*