रुक्मणी ये सोचे कि, जो कान्हा ने किया है मेरा हरण। अब होगा कृष्ण संग मेरा, करवाचौथ पर पाणिग्रहण। भाग्यवान हूँ जो मैंने, कृष्ण को पति रूप में है पाया। पर क्या ह्रदय संगिनी राधिका को कृष्ण अपने संग द्वारका लाया? राधा प्रेमी ने है मुझे अपनाया, पर कृष्ण ने तो अपने रोम-रोम में है सिर्फ राधा को ही बसाया। विवाह कर अपनी अर्धांगनी बना, कृष्ण ने मुझे पूर्ण बनाया। लेकिन क्या वाम रूह से राधिका को प्रथक कर पाया? सारे विश्व को जिसने मोहित किया, उसको सिर्फ राधा ने सम्मोहित किया। राधा का कान्हा अब मेरा कृष्ण है, या मेरे कृष्ण अब भी राधा का कान्हा है? रुक्मणी की इस व्यथा से, मंद-मंद मुस्काये मोहन। और कहे रुक्मणी से की... तूम हो मेरी माया वो है मेरी छाया, तुम मुझमे समायी और मैं उसमे समाया। कृष्ण को तो बरसाना छोड़ आया, भाग्यवान इस तन में तुमने मोक्षदायिनी राधिका को पाया। ©®राधाकृष्णप्रिय Deepika रुक्मणी ये सोचे कि जो कान्हा ने किया है मेरा हरण अब होगा कृष्ण संग मेरा करवाचौथ पर पाणिग्रहण भाग्यवान हूँ जो मैंने कृष्ण को पति रूप में है पाया। पर क्या ह्रदय संगिनी राधिका को कृष्ण अपने संग द्वारका लाया?