दरमियाँ कुछ बदल चुका हैं.. आग कुछ बुझा बुझा सा हैं... रात अब भी सर्द हैं, लम्हा अब भी रुका रुका सा हैं.. तेरा मेरे आगोश में आना, मुझमें कही खो जाना.. तेरे जुल्फों के साये में, मेरा तुझसा हो जाना.. सब याद है, पर हकीकत अब जुदा जुदा सा है... दरमियाँ कुछ बदल चुका है, आग कुछ बुझा बुझा सा है