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हर सुनहरी यादों की सुबह क्यों तन्हा होतीं हैं इन ख

हर सुनहरी यादों की सुबह क्यों तन्हा होतीं हैं
इन खबाबों की सुबह अब क्यों तन्हा होतीं हैं
यूं ददॅ से गुजरता मुसाफीर क्पों तन्हा होता हैं
हर कशती का किनारा क्यों तन्हा सा होता हैं
बेददॅ महोब्बत का सहारा क्यों तन्हा  सा होता हैं
सब बिछड कर क्यों तन्हा सें  खों जाता हैं
फिर क्यों यादों का सहारा तन्हा सा लगता हैं
फिर क्यों इक ददॅ का किनारा तन्हा सा लगता हैं
अब मंजिलों की राहें क्यों तन्हा सी लगतीं हैं
खोया हुआ वक्त यह सारा क्यों तन्हा गुजरता हैं

©Anshu writer #SunSet
anshusshayari9230

Anshu writer

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