Nojoto: Largest Storytelling Platform

शून्य है संवेदना यह सार इस कलयुग का है, मिट रही है

शून्य है संवेदना यह सार इस कलयुग का है,
मिट रही है वेदना , कराह रही जननी भी है।।
कितने लोगों को यहां, तकलीफ़ कितनी भारी है।
जिधर भी देखो, रो रही घर की दहलीज सारी है।
शून्य है संवेदना यह सार इस कलयुग का है।।

हम निरंतर बढ़ रहें ,पथ संचलन जारी है,
इस धरा को सींच दूं, यही जिम्मेदारी है।।

लोग कितने असहज महसूस करते हैं यहां
दूसरों को दर्द देकर खुद बने, मरहम के व्यापारी हैं।।
शून्य है संवेदना यह सार इस कलयुग का है,
मिट रही है वेदना कराह रही जननी भी है।


#मेरी_कलम_से

#साहित्य_की_कलम_से

©pramod sahitya
  #Aasmaan