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चलो लम्हें चुराते हैं,फिर से यूँ मुस्कुरातें हैं.

 चलो लम्हें चुराते हैं,फिर से यूँ मुस्कुरातें हैं..!
जैसे बचपन की वो यादें,संग में फिर से बितातें हैं..!
था कितना सुन्दर बचपन भी वो,ना कोई डर ना कोई फिक्र,फिर से खिलखिलाते हैं..!
ना धूप देखते और ना बारिश,मिल कर लम्हें वही चुराते हैं..!
अब तो फुर्सत होने पर भी,मिलने से कतराते हैं,
चलो लम्हें चुराते हैं..!फिर से यूँ मुस्कुरातें हैं..!

©SHIVA KANT
  #lamhen