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*महक उठी गली-गली* बसंत की बयार में चहक उठी

*महक उठी गली-गली*

बसंत  की  बयार   में चहक  उठी  कली-कली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

ब्योम सुर्ख लाल हुआ टेशू गुलाल सा,
वन में पलाश खिला गोरी के गाल सा,
सज धज  के  पनघट  पे  छोरियां  चलीं चलीं।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

रंग की फुहार आके धड़कनें बढ़ा गई,
भंग की तरंग उठ बिजलियां जगा गई,
चूम कर पवन चला कि पत्तियां खिली-खिली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। 

कंगना की प्यारी बोल मधु पराग घोलती,
मंद मंद पायल धुन  मन के द्वार खोलती,
स्वप्न आस  मन  में  लिए  शाम भी  ढली-ढली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

कंचन सा मन हुआ चांदी ए तन हुआ,
मधुरव से पूर्ण आज  मेरा नयन  हुआ,
यू   अनोखी  प्रीत  की  पांखुरी  खिली-खिली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।"

©Pankaj Singh महक उठी गली गली 

#WalkingInWoods
*महक उठी गली-गली*

बसंत  की  बयार   में चहक  उठी  कली-कली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

ब्योम सुर्ख लाल हुआ टेशू गुलाल सा,
वन में पलाश खिला गोरी के गाल सा,
सज धज  के  पनघट  पे  छोरियां  चलीं चलीं।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

रंग की फुहार आके धड़कनें बढ़ा गई,
भंग की तरंग उठ बिजलियां जगा गई,
चूम कर पवन चला कि पत्तियां खिली-खिली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। 

कंगना की प्यारी बोल मधु पराग घोलती,
मंद मंद पायल धुन  मन के द्वार खोलती,
स्वप्न आस  मन  में  लिए  शाम भी  ढली-ढली। 
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।

कंचन सा मन हुआ चांदी ए तन हुआ,
मधुरव से पूर्ण आज  मेरा नयन  हुआ,
यू   अनोखी  प्रीत  की  पांखुरी  खिली-खिली।
खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।"

©Pankaj Singh महक उठी गली गली 

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Pankaj Singh

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