यादों के जंगल मे गुम, बैठी थी परि गुमसुम, करती रहती खुद से बाते, तन्हा रहती उसकी रातें गुजर ना पाते सुबह शाम, आके ज़रा हाथ को थाम, भूल ना पाती उसके वादे, ना भूली उसकी मुलाकातें, दिल कि धड़कनों को कैसे थामे, रूह की पुकार कैसे ना पहचाने, उठ के दौड़ी वो इस बार, करने प्रेम की नैया पार! यादों के जंगल मे गुम, बैठी थी परि गुमसुम, करती रहती खुद से बाते, तन्हा रहती उसकी रातें गुजर ना पाते सुबह शाम, आके ज़रा हाथ को थाम, भूल ना पाती उसके वादे, ना भूली उसकी मुलाकातें,