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मैं दोस्ती गढ़ता रहा, वो इशकबाज निकले भाई से जो बढ़

मैं दोस्ती गढ़ता रहा, वो इशकबाज निकले
भाई से जो बढ़ कर थे,वही दगाबाज निकले

जो करता था मेरी तारीफ मेरे सामने
पिठ पीछे उसके कैसे-कैसे अल्फाज निकले

कब तक झूठी हाँ में हाँ मिलाओगे उसके
कभी तो उसके विरोध में आवाज निकले

खासम-खास हुआ करते थे हम
जाने कब  "आम" निकले

झूठे डुबे रहे उसकी दोस्ती में आज तक
हमे पता ही न चला, वो कब नाराज निकले

कभी साथ में साइकिल चलाता था वो
वजीर क्या बना, गजब उसके अंदाज निकले
                                                           ...जीत #दगाबाज
मैं दोस्ती गढ़ता रहा, वो इशकबाज निकले
भाई से जो बढ़ कर थे,वही दगाबाज निकले

जो करता था मेरी तारीफ मेरे सामने
पिठ पीछे उसके कैसे-कैसे अल्फाज निकले

कब तक झूठी हाँ में हाँ मिलाओगे उसके
कभी तो उसके विरोध में आवाज निकले

खासम-खास हुआ करते थे हम
जाने कब  "आम" निकले

झूठे डुबे रहे उसकी दोस्ती में आज तक
हमे पता ही न चला, वो कब नाराज निकले

कभी साथ में साइकिल चलाता था वो
वजीर क्या बना, गजब उसके अंदाज निकले
                                                           ...जीत #दगाबाज