मैं दोस्ती गढ़ता रहा, वो इशकबाज निकले भाई से जो बढ़ कर थे,वही दगाबाज निकले जो करता था मेरी तारीफ मेरे सामने पिठ पीछे उसके कैसे-कैसे अल्फाज निकले कब तक झूठी हाँ में हाँ मिलाओगे उसके कभी तो उसके विरोध में आवाज निकले खासम-खास हुआ करते थे हम जाने कब "आम" निकले झूठे डुबे रहे उसकी दोस्ती में आज तक हमे पता ही न चला, वो कब नाराज निकले कभी साथ में साइकिल चलाता था वो वजीर क्या बना, गजब उसके अंदाज निकले ...जीत #दगाबाज