मूक हुई यहां पर सत्ता, बेड़ियों में बंधकर रह गए प्रशासन के हाथ। दर दर भटक रही यहां गरीब जनता, नही देने वाला है कोई इनका साथ।। सड़को पर है अपना मासूम पड़ा, मासूमियत लगाती है आवाज़ यहां। प्रशासनों में तो है अपनी अश्रव्यता, चाहे जितना भी चीखें अपना संत्रस्त जहां।। कहीं कहीं पर है निवाला फेंका जाता, कही पेट दबाकर है कोई सोता। आम जनता चाहे जितना भी लगाएं गुहार, सुनने वाला नही कोई होता।। हैवानियत भी सर चढ़कर बोल रही, पर नही यहां पर कोई जिम्मेदारी लेता। भ्रष्टाचार में संलिप्त हुई प्रशासन, औरों के भी हिस्से का सब कुछ लेता।। पैसों की है बस यहां लूट मची, नही होती है अब भावनाओं की कद्र यहां। बेड़ियों में बंध गया प्रशासन, दया, भाव, प्रेम, त्याग, समर्पण, सब मिट गया यहां।। #प्रशासन #बेड़ियों में प्रशासन #बेड़ियों