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शब्दों के जाल घनेरे थे शायद हम भी अन्धेरे में है

शब्दों के जाल घनेरे थे 
शायद हम भी अन्धेरे में है 
रिश्ते जुड़ कर भी 
टूट जाते है
 शायद समझ हममें भी कम है। *kahe kya *
शब्दों के जाल घनेरे थे 
शायद हम भी अन्धेरे में है 
रिश्ते जुड़ कर भी 
टूट जाते है
 शायद समझ हममें भी कम है। *kahe kya *