लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए
गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए
बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को
बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को
मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन
एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल