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लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक

लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए
गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए
बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को
बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को
मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन
एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल

शेष अनुशीर्षक में........ लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए
गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए
बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को
बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को
मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन
एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल
लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए
गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए
बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को
बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को
मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन
एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल

शेष अनुशीर्षक में........ लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए
गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए
बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को
बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को
मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन
एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल
akankshagupta7952

Vedantika

New Creator

लड़कर ज़िन्दगी से स्वप्नलोक में एक रात में जब हम थक गए गहरी नींद सुबह जब खुली तो पत्थर का एक बुत बन गए बुत बन कर हमने जाना वृक्षों की अनकही विवशता को बांध कर रख दिया हमने हृदय में उमड़ रही भावनाओं के ज्वार को मौन हो देख रहे थे हम समाज की परिपाटी का चलन एक व्यापारी ले गया हमें जब अपनी दुकान पर कल