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तन्हा गुजर जाते हैं, दिन अपने। अब सुकून की कभी,

तन्हा गुजर जाते हैं, 
दिन अपने।

अब सुकून की कभी,
 शाम नहीं आती।

यकीन ना करो,
 हाथ की लकीरों पर।

लकीरें कभी किसी के,
 काम नहीं आती।।

©Kumar.Satyajit
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