दिसंबर का आखरी हफ्ता आते ही में सोचने लग जाती हूं कितनी दूर आ गई और कितना और चल पाती हूं जब ताप शीत में बदल जाता है तब में खुद को सहलाती हूं, कहती हूं कितनी दूर आती हूं और कितना और चल पाती हूं जब निराशा के अंधेरे में , मैं आशा का दीपक जलती हूं तब पुरानी यादों को में फिर खंडहर कर जाती हूं कुछ क्षण के लिए में आगे बढ़ जाती हूं अपने अंतर्मन को मैं फिर नई उमंग और इरादों से सजाती हूं में फिर नया साल मानती हूं! ©Words Of Imagination मैं फिर नया साल मनाती हूं! #नयासाल #कविताएं #Poetry #newyear2022 #hindi_poetry #HindjPoetry #हिंदीनोजोटो