सच्ची जी.. ईश्क नचाये जिसको यार फिर वो नाचें बीच बाज़ार.. ये तो मदहोशी में ही हो सकता है.. और फिर करीगरी कुदरत की जब फुरसत की हों तो फिर ता उम्र नाचता रहता है.. बेचारा आशिक़... देख कुदरत की करागिरी इंसान मदहोश हो जाता है ईश्क़ और भी खूबसूरत हो जाता है इश्क होने के बाद Collaborating with Aesthetic Thoughts Collaborating with Vijaylaxmi Rajpoot