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बहुत कहते हैं शहर में हैं, फिर भी रहता अकेला हैं।

बहुत कहते हैं शहर में हैं,
फिर भी रहता अकेला हैं।
रम गया हूँ भीतर कहीं
तभी तो दिखता नहीं मेला हैं।

मेरा बचपन का जो साथी
मुझसे बचपन में खेला हैं।
चला आध्यात्म के पथ पर
वह अब किसी संत का चेला हैं।

©Kamlesh Kandpal
  #AloneInCity