हे मां सरस्वती, विद्या की देवी भगवती हो , ज्ञान स्वरूपा हो मैं एक अज्ञानमयी मूरत तुम ज्ञाननानंद स्वरूपा हो। वीणा पर देवी तुमने तो शब्दों के तार संजोए है। वाहन है हंस तुम्हारा हम सब तुझ में ही खोए है। वर की अनुपम देवी हो तुम तुम से ही ज्ञान का सागर है। जो जन इसमें गोते खाते वह होते बहुत उजागर है। कृपा हम पर भी वर्षा दो हम अंधकार में भटक रहे। वंदन है बारम्बार तुम्हे तुमसे ही हम सब निखर रहे। उपकार तुम्हारा इस जग पर हम ऋणी तुम्हारे हरपल है। ज्ञानमाई उजियारे तुमसे छटते अज्ञान तिमिर सब है। अपनी वीणा की मधुर तान नितप्रति गूंजाए रखना देवी संसार तिमिर हरती रहना बसंत वर्षाए रखना देवी अरिहंतिका जैन ©Arihantika Jain aaru मां सरस्वती