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“बचपन की स्मृतियाँ" अनुशीर्षक में ‘खिड़कियांँ उन

“बचपन की स्मृतियाँ"
अनुशीर्षक में

 ‘खिड़कियांँ उन स्मृतियांँ की तरह भी हैं
जिनसे कूदकर आ सकता है बचपन’
बहुत दिनों बाद आज याद आया बचपन
आँखें बंद करके खोल दिए यादों के झरोखों को
कितना मासूम था बचपन सिर्फ दो उंगलियाँ जुड़ने से दोस्ती शुरू हो जाती थी 
ना कोई मन में बैर ना कोई भेद भाव
ना कुछ था मालूम धर्म जाति बस ज्ञान था दोस्ती और प्यार का
कितना प्यारा था बचपन खिला रहता हमेशा मन
“बचपन की स्मृतियाँ"
अनुशीर्षक में

 ‘खिड़कियांँ उन स्मृतियांँ की तरह भी हैं
जिनसे कूदकर आ सकता है बचपन’
बहुत दिनों बाद आज याद आया बचपन
आँखें बंद करके खोल दिए यादों के झरोखों को
कितना मासूम था बचपन सिर्फ दो उंगलियाँ जुड़ने से दोस्ती शुरू हो जाती थी 
ना कोई मन में बैर ना कोई भेद भाव
ना कुछ था मालूम धर्म जाति बस ज्ञान था दोस्ती और प्यार का
कितना प्यारा था बचपन खिला रहता हमेशा मन