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तम घोर ने बाहर नहीं, भीतर से है सम्पूर्ण घेरा, नभ

तम घोर ने बाहर नहीं, भीतर से है सम्पूर्ण घेरा,
नभ में उदित इस सूर्य से, मिटता नहीं उर का अंधेरा,
ये यामिनी है मांगती, प्रयत्न नित नूतन सतत,
जब दीप दीपित हो प्रखर, तब ही कहो सच में सवेरा।
 यह प्रतियोगिता संख्या - 22 है
साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत  🙏🏻 है।
 
चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें

🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा।

#collabchallenge
तम घोर ने बाहर नहीं, भीतर से है सम्पूर्ण घेरा,
नभ में उदित इस सूर्य से, मिटता नहीं उर का अंधेरा,
ये यामिनी है मांगती, प्रयत्न नित नूतन सतत,
जब दीप दीपित हो प्रखर, तब ही कहो सच में सवेरा।
 यह प्रतियोगिता संख्या - 22 है
साहित्य कक्ष में आप सभी कवि-कवियत्री का स्वागत  🙏🏻 है।
 
चार(4) पंक्ति में रचना Collab करें

🅽🅾🆃🅴 - अगर कोई सारे नियम और शर्तों को ध्यान में रखकर Collab नहीं करता है। उसकी रचना को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया जाएगा।

#collabchallenge