तेरा दिन ढल गया रात हो गई है दिया बुझ गया रोशनी खो गई है अब तो जाग भी जा न मुसाफ़िर, अब तो तेरी उम्र जाने की हो गई है क्या लाया,क्या छोड़कर जा रहा है क्यो ये बहस तेरे खुद से हो रही है दिल से विजय जाग जा