उनकी अदालत मे पहुंचकर लबों पर खामोशी छा जाती जब मेरी नज़रे उनकी नज़रो से लग जाती हे उनकी अदालत मे मदहोश खड़ी होकर उनको मुस्कराता देख कर सब दुनिया भूल जाती हु इल्जाम पे इल्जाम लगते हे मुझ पर जब मे पेशी पर जाती हु सामने सांवरिया को खड़ा देख कर सब इल्जाम कबूल कर जाती हु जुर्म की सजा भी खुद मांगती हु माधव से पलकों मे खुशी के आँशु नहीं छीपा पाती हु ताह उमर की कैद वृंदावन की गलियों मे ओर यमुना जी के तट पर सजा काटना चाहती हु जब मे व्रन्दवन पेशी पर जाती हु ।। ©Bh@Wn@ Sh@Rm@ #love krishna