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ख़त ख़त तेरे थे या खजाना था कोई, आज तक दिल से लगा के

ख़त ख़त तेरे थे या खजाना था कोई,
आज तक दिल से लगा के रख्खे है।
मेरे बिन कोई उसे ना पढ़ शके,
इस लिए मेने छुपा के रख्खे है।
इस्माइल जबीह
97120 97722 कतआ,इस्माइल जबीह
ख़त ख़त तेरे थे या खजाना था कोई,
आज तक दिल से लगा के रख्खे है।
मेरे बिन कोई उसे ना पढ़ शके,
इस लिए मेने छुपा के रख्खे है।
इस्माइल जबीह
97120 97722 कतआ,इस्माइल जबीह

कतआ,इस्माइल जबीह