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देख दर्पण, दर्प करती स्वयं के स्वरूप का विस्मृत ह

देख दर्पण, दर्प करती
स्वयं के स्वरूप का 
विस्मृत हुआ कांत मुखड़े को, 
हमने ही नजर किया
इक धवल तिनका धूप का !

कुटिल तरूणाई ने ली जो अँगड़ाई
स्पर्धा को निमंत्रित हुआ यौवन प्रसून का
सूचित हो उनको, ज्योत्सना अपनी शशि ने ऐसे ही बख्शी नहीं
मेरा ही रंग उधारी है 
जो छिड़का है साँझ ने महरून सा ! दर्प-अहंकार
प्रसून- खिलती कली
तरूणाई- जवानी
#yqbaba #yqdidi #poetry #yqquotes #love #poem #yqhindi #surajaaftabi
देख दर्पण, दर्प करती
स्वयं के स्वरूप का 
विस्मृत हुआ कांत मुखड़े को, 
हमने ही नजर किया
इक धवल तिनका धूप का !

कुटिल तरूणाई ने ली जो अँगड़ाई
स्पर्धा को निमंत्रित हुआ यौवन प्रसून का
सूचित हो उनको, ज्योत्सना अपनी शशि ने ऐसे ही बख्शी नहीं
मेरा ही रंग उधारी है 
जो छिड़का है साँझ ने महरून सा ! दर्प-अहंकार
प्रसून- खिलती कली
तरूणाई- जवानी
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