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“तेरे बिन”

                    “तेरे बिन”
                   ग़ज़ल – 2

आ देख तेरे बिन कैसे जी रही हूंँ मैं।
जैसे ख़ुद की ज़िन्दगी से बेखबर हो रही हूंँ मैं।

नज़रे थकती नहीं आज भी रास्ते वही ढूँढती रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की मंज़िल के लिए कितनी बेकरार रही हूंँ मैं।

ढलती शमा तन्हाई की ख़ामोशी में अकेले ही सिमट रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की तलाश में दिन रात सबसे बे–ख़बर हो रही हूंँ मैं।

धीरे धीरे तेरे प्यार को अपनी रूह में उतार रही हूंँ मैं।
एक बार तुम पुकारो मेरा नाम अपनी दिल के मंदिर में तुम्हें बसा रही हूंँ मैं। #कोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#kkकविसम्मेलन 
#kkकविसम्मेलन3 
#kkdrpanchhisingh
                    “तेरे बिन”
                   ग़ज़ल – 2

आ देख तेरे बिन कैसे जी रही हूंँ मैं।
जैसे ख़ुद की ज़िन्दगी से बेखबर हो रही हूंँ मैं।

नज़रे थकती नहीं आज भी रास्ते वही ढूँढती रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की मंज़िल के लिए कितनी बेकरार रही हूंँ मैं।

ढलती शमा तन्हाई की ख़ामोशी में अकेले ही सिमट रही हूंँ मैं।
तेरे प्यार की तलाश में दिन रात सबसे बे–ख़बर हो रही हूंँ मैं।

धीरे धीरे तेरे प्यार को अपनी रूह में उतार रही हूंँ मैं।
एक बार तुम पुकारो मेरा नाम अपनी दिल के मंदिर में तुम्हें बसा रही हूंँ मैं। #कोराकाग़ज़ 
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