जुदाई वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। नींद नहीं नैनों में पर सपनों की परछाई है, सुख-चैन सब कुछ गुमा, कैसी घड़ी ये आई है। कभी भूलूँ कभी यादों में खोऊँ प्यार की ये गहराई है, एक क्षण लगे घंटा समान, लंबी बड़ी जुदाई है। नहीं छँटते गम के अंधेरे क्या यही जीवन की सच्चाई है, किसके लिए अब रुके 'विश्वासी', हर तरफ नफरतों की खाई है। वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। #प्रकाशित कविता #विश्वासी