निगाहों ने मेरी ये मंजर सुबह - शाम देखा है। मुहब्बत में ए सनम, हमने कत्लेआम देखा है। राब्ता नही अब मेरा, इन इश्क़ की गलियों से, इन गलियों ने आशिकी को बदनाम देखा है। दफ़न हो जाती है मुहब्बत बेदर्द दिवारों में यहाँ, हमने पाक मुहब्बत का ये हश्र सरेआम देखा है। जो समझते थे इश्क़ को खुदा की इबादत कभी, उन आशिकों के हाथों में हुस्न का जाम देखा है। दूर तक जिनका वास्ता नहीं था शेरो शायरी से, आज गीत और गजलों में उनका नाम देखा है। ©Sneha Agarwal 'Geet' #स्नेहा_अग्रवाल #sneha_geet #साहित्य_सागर #ग़ज़ल_सृजन