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कभी-कभी कुछ भी ना सूझे, मन विकल आहत प्रतिपल, पी

कभी-कभी कुछ भी ना सूझे,  
मन विकल आहत प्रतिपल, 
पीर यह कैसी किससे पूछें?
यह ना करती तो अच्छा होता, 
कौन कब कितना है सच्चा, 
अनगिनत प्रश्नों में उलझा, 
मन जैसे एक अबोध बच्चा, 
ढूंढ अब इन प्रश्नों का हल, 
हो पाऊंगी क्या कभी सफल, 
ऐ मन  तुझको है उत्तर देना, 
तू सब जाने क्या है कहना, 
ढोंग तू इतना क्यों करती है?
हाथों में तो कलम पकड़ी है, 
चल पगली तू किस से डरती है, 
कलम ने तो तेरी खाई है कसम,
सच लिखना है उसमें होता दम, 
फिर मन में रखती तू क्यों पीर, 
लिख दे पन्ने पर ना बहा तू नीर, 
मन हो गया जैसे शांत जल, 
ना विकल, ना विह्वल, 
शीतल, कोमल, विमल, प्रतिपल 
जब भी सूझे  ना कोई भी बात 
कलम मेरी अनुपम सौगात|

#सविता सिंह मीरा

©savita singh Meera #मन 

#waiting
कभी-कभी कुछ भी ना सूझे,  
मन विकल आहत प्रतिपल, 
पीर यह कैसी किससे पूछें?
यह ना करती तो अच्छा होता, 
कौन कब कितना है सच्चा, 
अनगिनत प्रश्नों में उलझा, 
मन जैसे एक अबोध बच्चा, 
ढूंढ अब इन प्रश्नों का हल, 
हो पाऊंगी क्या कभी सफल, 
ऐ मन  तुझको है उत्तर देना, 
तू सब जाने क्या है कहना, 
ढोंग तू इतना क्यों करती है?
हाथों में तो कलम पकड़ी है, 
चल पगली तू किस से डरती है, 
कलम ने तो तेरी खाई है कसम,
सच लिखना है उसमें होता दम, 
फिर मन में रखती तू क्यों पीर, 
लिख दे पन्ने पर ना बहा तू नीर, 
मन हो गया जैसे शांत जल, 
ना विकल, ना विह्वल, 
शीतल, कोमल, विमल, प्रतिपल 
जब भी सूझे  ना कोई भी बात 
कलम मेरी अनुपम सौगात|

#सविता सिंह मीरा

©savita singh Meera #मन 

#waiting