#कश्मीरी पंडित# बंजारे नही है हम बस बेघर हुए है, हम अपनी ही ज़मी से अलग हुए हैं। छोड़ कर सपनो का महल मजबूरी में, अब हम जगह जगह पर बिखरे हुए हैं। यादें तो बहुत आती है वहां की पर, वो दर्दनाक चीखों से हम आज भी डरे हुए है। कैसे भूल दे वो मंज़र जो आंखों के सामने थे, हम आज भी वो तस्वीर को ज़ेहन में लिए हुए है। हम गुहार लगाएं तो भी किस से लगाएं, यहां तो अपने ही हाथों में खंजर लिए हुए है। ©shubhangi sharma