तुम बिन बताए कहां चली गई थी आवाज देता रहा था मैं.. दूर दूर तक तुमको ढूंढा मगर नहीं पा सका था मैं.. चाहता कितना तुमको नहीं बता सका था मैं.. रांझा की तरह वन वन भटक रहा था मै.. सपने सारे एक एक करके टूट से गए.. एकदम बिखर गया था.. मैं गम के आंसू पी रहा था मैं जुदाई का गम सह रहा था मैं पल -पल प्रतिपल जीते जी मर रहा था मैं लौट आओ आकर रोक लो शायद बहुत दूर जा चुका हूँ मैं या कर दो कुछ ऐसा करम जो ये भावनाओं की सांस थम जाए बढ़ जाऊँ अपने योगपथ की राह पल में ही इस -अज्ञात का अस्तित्व मिट जाए मिलेंगे हम अगले जनम तब तक तपस्या और त्याग ही दिखलायें.. क्योंकि कुछ इस कदर ही इंतजार किया हूँ मैं -अज्ञात #मेरेएहसास #मेरे_शब्दांश #paidstory1