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" व्यास मेरी प्रकृति " ( अनुशीर्षक ) हॉस्टल

" व्यास मेरी प्रकृति "
 ( अनुशीर्षक ) 
    हॉस्टल में पढ़ा करती थी तो बचपन में खासा अनुभव नहीं था कि घर में सब कैसे रहते,.. ' गांव का माहौल ', परन्तु गांव लौटने कि तीव्र इच्छा हमेशा ही रहती थी, स्कूल से लीव ग्रांट होते ही मासी के साथ निकले गेट से ये पकड़ी बस, ये पटका अपनी जरूरत के सामान से भरा बैग, और दौड़ लगा ली उस खिड़की वाली सीट की ओर जो खाली हो,

     इसे आँखों का भरना कहते हैं शायद आपकी लालची आँखे आतुर होती हर वह वस्तु देखने के लिए जो आपने एक अरसे से न देखी,.. खोल दो बाल अपने, खिड़की से निकल दो सर बाहर ओर आँखे मूँद कर करो महसूस वो ठंडी हवा जो आपके चेहरे को चिरती हुई आपके पुरे शरीर को छू ही सिरहन पैदा कर रही, और.. और ज्यादा उत्तेजित कर रही आपको प्रकृति को महसूस करने के लिए,.

      तुम व्यास के पानी को देखोगे ना सच कहूँ तो ठहर जाओगे चलती बस में उसके बहाव के साथ, सीढ़िनुमा खेत संकरे - पथरीले रस्ते, लकड़ी के पुल, बारिश की हल्की बूंदो के साथ जहां एक पहाड़ी भीगी हुई है वहीं दूसरी चटक रही सूरज के तेज प्रकोप से,.. कुछ औरतें सर पर धाठु बांधे दराती लिए घास काट रही पुले दर पुले,.. भेंडे - बकरियां - गाय - बैल चर रहे घास, भोंक रहे कुत्ते,..

मेरी आँखे, मेरा मन, मेरा ह्रदय, मेरा शरीर, मेरी आत्मा सबको स्पर्श कर रहे,.. बिना उनसे किसी भी प्रकार का अनुमोदन प्राप्त किए,..
" व्यास मेरी प्रकृति "
 ( अनुशीर्षक ) 
    हॉस्टल में पढ़ा करती थी तो बचपन में खासा अनुभव नहीं था कि घर में सब कैसे रहते,.. ' गांव का माहौल ', परन्तु गांव लौटने कि तीव्र इच्छा हमेशा ही रहती थी, स्कूल से लीव ग्रांट होते ही मासी के साथ निकले गेट से ये पकड़ी बस, ये पटका अपनी जरूरत के सामान से भरा बैग, और दौड़ लगा ली उस खिड़की वाली सीट की ओर जो खाली हो,

     इसे आँखों का भरना कहते हैं शायद आपकी लालची आँखे आतुर होती हर वह वस्तु देखने के लिए जो आपने एक अरसे से न देखी,.. खोल दो बाल अपने, खिड़की से निकल दो सर बाहर ओर आँखे मूँद कर करो महसूस वो ठंडी हवा जो आपके चेहरे को चिरती हुई आपके पुरे शरीर को छू ही सिरहन पैदा कर रही, और.. और ज्यादा उत्तेजित कर रही आपको प्रकृति को महसूस करने के लिए,.

      तुम व्यास के पानी को देखोगे ना सच कहूँ तो ठहर जाओगे चलती बस में उसके बहाव के साथ, सीढ़िनुमा खेत संकरे - पथरीले रस्ते, लकड़ी के पुल, बारिश की हल्की बूंदो के साथ जहां एक पहाड़ी भीगी हुई है वहीं दूसरी चटक रही सूरज के तेज प्रकोप से,.. कुछ औरतें सर पर धाठु बांधे दराती लिए घास काट रही पुले दर पुले,.. भेंडे - बकरियां - गाय - बैल चर रहे घास, भोंक रहे कुत्ते,..

मेरी आँखे, मेरा मन, मेरा ह्रदय, मेरा शरीर, मेरी आत्मा सबको स्पर्श कर रहे,.. बिना उनसे किसी भी प्रकार का अनुमोदन प्राप्त किए,..
alpanabhardwaj6740

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