तुर्की कवि नाज़िम हिक़मत की कविता 'कितनी गर्म और ख़ूबसूरत पृथ्वी है यह' मैं कितना ख़ुश हूं कि दुनिया में पैदा हुआ मुझे उसकी रोशनी से, रोटी से, मिट्ती से प्यार है माना कि लोगों ने उसका व्यास नाप डाला निकटतम इंचों तक