रात का आखरी आँसू और ये दूरी तुम्हें नही लगता ये ज़्याती है ? एक साल होने को आया है और एक तुम हो जो किसी निरमोही की तरह तटस्थ विलीन हो ब्रम्हांड के किसी कोने में मैं शैलपुत्री तो नहीं पर मीरा से कम कठिन जीवन नहीं है मेरा कभी कभी लगता हैं जैसे जीवन बीते है मेरे इस झरोके पे देखते तुम्हारी राह यहाँ से एक धुंदला सा साया तो दिखता हैं पर तुम नहीं मुझे याद है वो रात लेकर मुझे अपनी बाजुओं में तुमने मुझे रंगा था वो रंग हल्का पड़ रहा हैं मैं बेज़ान हो रही हूँ आख़िर उस रंग से मिले भी तो जन्म बीत चुके हैं सुबह होने को आई हैं पर मुझें इंतज़ार हैं उस कस्तूरी की धीमी गंध का जो तुम्हारे होंठो की मुस्कान से आती हैं मैं तरस गई हूँ क्या करूँ भला तुम ऐसे ही याद जो आते हों सुबह से अगली सुबह तक बस ऐसी ही हर पहर पर एक हिचकी तुम्हारी स्मृतियों के पन्ने पलटती हैं और दे जाती हैं मुझें ठंडक जिसकी हवा से बन जाता हैं एक आँसू और बह जाता हैं वो तुम्हारी राह में। उज्ज्वल~ ©Ujjwal Sharma रात का आखरी आँसू और ये दूरी तुम्हें नही लगता ये ज़्याती है ? एक साल होने को आया है और एक तुम हो जो किसी निरमोही की तरह तटस्थ विलीन हो ब्रम्हांड के किसी कोने में