हुस्न-ए-यूसुफ़ दिरहम-ओ-दीनार में बेचा गया आबरूए मिस्र को बाज़ार में बेचा गया आदमियत भूल कर उफ़ चंद सिक्कों के इवज़ मुफ़लिसों के ख़ून को ज़रदार में बेचा गया अस्र -ए-हाज़िर में तआस्सुब की स्याही घोल कर झूट लिख कर किस क़दर अख़बार में बेचा गया ज़िंदगी जिसमें गुज़ारी थी कभी अजदाद ने अब वही घर आपसी तकरार में बेचा गया दिल में जो महदूद थी वो आगई चौखट तलक नफ़रतों को बर्क़ सी रफ़्तार में बेचा गया जब बितानी थी मुझे अफ़्लास में अपनी हयात किस लिए मेरा लहू बेकार में बेचा गया इस लिए भी आजकल तारीकियों में ख़ौफ़ है दहश्तों को पाईली झनकार में बेचा गया क्यों ना हो आख़िर मुरत्तिब क़ल्ब पर उस का असर ज़हर को जब शरबती मिक़दार में बेचा गया चल रहा है आज भी सदियों पुराना सिलसिला हुस्न को ही इशक़ के दरबार में बेचा गया साद जी ये देखिए ज़ालिम के हक़ में फ़ैसला किस तरह इंसाफ के किरदार में बेचा गया अरशद साद रूदौलवी ©साद रूदौलवी سعدؔ ردولوی #udas