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घन घोर घटा घट घट में छाई,पनघट पनघट है सन्नाटा। ना

घन घोर घटा घट घट में छाई,पनघट पनघट है सन्नाटा।
ना गगन सुमन में प्रेमतत्व ,ना है व्योम में समरसता।
ना गुंजित खग मृग स्वर हैं, ना है कोई अब करकसता।
बस भानु तेरे अनुपस्थिति में,अब तूसार ताने कसता।
तू आ,अब आ गुंजन दे दे,अलीपुंजों की समझो वरबसता।
दिनकर तू है, तू है भास्कर, तू कोको के शोक विमोचकता।
अब बहुत हो गया,ठंडक,ठिठुरन अब तेरी है आवश्यकता।

डॉ.अजय कुमार मिश्र

©Ajay Kumar Mishra हे भानु
घन घोर घटा घट घट में छाई,पनघट पनघट है सन्नाटा।
ना गगन सुमन में प्रेमतत्व ,ना है व्योम में समरसता।
ना गुंजित खग मृग स्वर हैं, ना है कोई अब करकसता।
बस भानु तेरे अनुपस्थिति में,अब तूसार ताने कसता।
तू आ,अब आ गुंजन दे दे,अलीपुंजों की समझो वरबसता।
दिनकर तू है, तू है भास्कर, तू कोको के शोक विमोचकता।
अब बहुत हो गया,ठंडक,ठिठुरन अब तेरी है आवश्यकता।

डॉ.अजय कुमार मिश्र

©Ajay Kumar Mishra हे भानु

हे भानु #कविता