मुल्क हैं अपना दिल्ली भी है अपनी फिर क्यों टोका जाता है लाखो सैनिक की घेरा बंदी फिर क्यो हमे रोका जाता है वासी हैं हम इस देश मिट्टी से हम तिलक लगाते हैं भूखे हैं बच्चे हमारे कुछ लोग कह कहे लगाते हैं वर्षो बीत गए घर की चौखट छोड़ेखेत खलिहान बंजर पड़े हैं वो तख्त पे बैठे हैं मुंह को मोडे क्या यही लोकतन्त्र है या फिर जनतंत्र का अपमान है द्वेष भाव रखने वालो तुम ही बताओ क्या अब भी हमारा देश महान है ©Md Khan Pathan ,# indian public कविता