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बहुत घमंडी है मैं मालिक अच्छा किसी का सोचूँ ना अ

बहुत घमंडी है मैं मालिक
 अच्छा किसी का सोचूँ ना
 अपने को ही ऊपर समझूँ
 किसी को कुछ मैं जानूँ ना
 कड़वे सच कड़वा बोल बोलती
 जिसको भी मन चाहता है 
नहीं समझती मेरी बातों से 
दिल किसी का दुखता है 
अपने हिसाब से मोड़ना चाहूँ
तक़दीर की मैं लकीरों को 
अपने मुताबिक बांध कर रखूं
 वक्त की जंजीरों को
मगरमच्छ के आंसू बहाती
 दूसरों के गुनाह दिखाने को
 माफी मांग कर  सच्ची बनती
 तरस सभी का पाने को
 नहीं  गुनाह माफी के काबिल
 इतना तो मैं जानती हूं
रहमत से तेरी मिल जाए माफ़ी
ये भी मैं जानती हूँ

©Anita Mishra #confess
बहुत घमंडी है मैं मालिक
 अच्छा किसी का सोचूँ ना
 अपने को ही ऊपर समझूँ
 किसी को कुछ मैं जानूँ ना
 कड़वे सच कड़वा बोल बोलती
 जिसको भी मन चाहता है 
नहीं समझती मेरी बातों से 
दिल किसी का दुखता है 
अपने हिसाब से मोड़ना चाहूँ
तक़दीर की मैं लकीरों को 
अपने मुताबिक बांध कर रखूं
 वक्त की जंजीरों को
मगरमच्छ के आंसू बहाती
 दूसरों के गुनाह दिखाने को
 माफी मांग कर  सच्ची बनती
 तरस सभी का पाने को
 नहीं  गुनाह माफी के काबिल
 इतना तो मैं जानती हूं
रहमत से तेरी मिल जाए माफ़ी
ये भी मैं जानती हूँ

©Anita Mishra #confess
anita2403784021992

Anita Mishra

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