बहुत घमंडी है मैं मालिक अच्छा किसी का सोचूँ ना अपने को ही ऊपर समझूँ किसी को कुछ मैं जानूँ ना कड़वे सच कड़वा बोल बोलती जिसको भी मन चाहता है नहीं समझती मेरी बातों से दिल किसी का दुखता है अपने हिसाब से मोड़ना चाहूँ तक़दीर की मैं लकीरों को अपने मुताबिक बांध कर रखूं वक्त की जंजीरों को मगरमच्छ के आंसू बहाती दूसरों के गुनाह दिखाने को माफी मांग कर सच्ची बनती तरस सभी का पाने को नहीं गुनाह माफी के काबिल इतना तो मैं जानती हूं रहमत से तेरी मिल जाए माफ़ी ये भी मैं जानती हूँ ©Anita Mishra #confess