शब्द सारथी बन शब्दों को, जंगी बना उतारा है। स्वाभिमान अरु सत्य के हित, जीवन पर्यन्त गुजारा है। जिनका कविता प्रजातंत्र का, मान रखा उन्वान किया। शब्द शब्द था ओज सृजन, शारदे मां को प्रणाम किया । उनके शब्दों का बंधन था, ज्वालामुखीय अंगार के सम्मुख । शब्द हितैषी था भारत का, बिन भय आशंका किंचित दुख। उस शब्दों के दिनकर को काव्य गगन के दिनकर को। नमन किया है ,नमन किया है, नमन किया है !!! ©®DeePaK JhA RuDrA #दिनकर_जयंती