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सच कहूं तो अब डर लगता है कहीं भीड़ में जाने में,

सच कहूं तो अब डर लगता है कहीं भीड़ में जाने में, 
किसी मंदिर, गुरुद्वारा, गिरजा, मॉल, होटल, 
हर वो जगह जहां लोग हो! बहुत सारे लोग।
शायद ये डर है या फिर खुद की उलझनों की भीड़ में 
खुद को तलाशने की कोशिश,

बिखरे बाल,
फटे- पुराने, सिलवटों भरे कपड़े,
जूते के कोने से झांकता मेरा अंगूठा,
अबूझ ग्लानि से झुकी नज़रें और उनसे सब कुछ देख लेने की ज़िद,
एक घड़ी जिसकी सेकेंड की सूई टूटी है, 
बंद हो गई है उसकी टिक टिक भी,
और लगता है वक्त जैसे ठहर सा गया है, 
अब चलता नहीं मेरे कहने से, 
शायद पहले भी नही चलता था मगर सुकून ये था कि 
मेरे घड़ी की वो टूटी सूई तो थी. 
जो वक्त के चलने का एहसास करवाती थी..

"सुना है तुमने शहर बदल लिया है अपना"

सच कहूं तो डर लगता है अब भीड़ में जाने में।।

©Vivek Sharma Bhardwaj #lonely #डर #शहर #भीड़ #mohabat #गलियां
सच कहूं तो अब डर लगता है कहीं भीड़ में जाने में, 
किसी मंदिर, गुरुद्वारा, गिरजा, मॉल, होटल, 
हर वो जगह जहां लोग हो! बहुत सारे लोग।
शायद ये डर है या फिर खुद की उलझनों की भीड़ में 
खुद को तलाशने की कोशिश,

बिखरे बाल,
फटे- पुराने, सिलवटों भरे कपड़े,
जूते के कोने से झांकता मेरा अंगूठा,
अबूझ ग्लानि से झुकी नज़रें और उनसे सब कुछ देख लेने की ज़िद,
एक घड़ी जिसकी सेकेंड की सूई टूटी है, 
बंद हो गई है उसकी टिक टिक भी,
और लगता है वक्त जैसे ठहर सा गया है, 
अब चलता नहीं मेरे कहने से, 
शायद पहले भी नही चलता था मगर सुकून ये था कि 
मेरे घड़ी की वो टूटी सूई तो थी. 
जो वक्त के चलने का एहसास करवाती थी..

"सुना है तुमने शहर बदल लिया है अपना"

सच कहूं तो डर लगता है अब भीड़ में जाने में।।

©Vivek Sharma Bhardwaj #lonely #डर #शहर #भीड़ #mohabat #गलियां