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अधखुले नैनों से, ​ताकती वो, ​पगडंडी की ऊँची ढ़लान स

अधखुले नैनों से,
​ताकती वो,
​पगडंडी की ऊँची ढ़लान से,
​उतरते सूरज को,
​ व,
​तलाश रही है वो,
​अपने जीवन की,
​वास्तविकता का यथार्थ,
और..​श्वाँसों के आने जाने से,
​तय करती,
​उम्र का उपसंहार,
​उसकी पलकों मे बँधे ​मोती,
​अपनी स्थिरता की प्रस्तावना,
​करने में असमर्थ हो गये, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#अनामिका

अधखुले नैनों से,
​ताकती वो,
​पगडंडी की ऊँची ढ़लान से,
​उतरते सूरज को,
अधखुले नैनों से,
​ताकती वो,
​पगडंडी की ऊँची ढ़लान से,
​उतरते सूरज को,
​ व,
​तलाश रही है वो,
​अपने जीवन की,
​वास्तविकता का यथार्थ,
और..​श्वाँसों के आने जाने से,
​तय करती,
​उम्र का उपसंहार,
​उसकी पलकों मे बँधे ​मोती,
​अपनी स्थिरता की प्रस्तावना,
​करने में असमर्थ हो गये, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#अनामिका

अधखुले नैनों से,
​ताकती वो,
​पगडंडी की ऊँची ढ़लान से,
​उतरते सूरज को,
akalfaaz9449

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