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मेरा चरित्र दागदार, (अनुशीर्षक में

 मेरा चरित्र दागदार,

              (अनुशीर्षक में पड़े)
कृपया आपके कीमती सुझाव अवश्य साझा करें,
 धन्यवाद। मेरा चरित्र दागदार है, यह विषय किसी विषयवस्तु से संबंधित नहीं है, अपितु इसके बहुत से प्रमाण मेरे दैनिक जीवन से या यूं कहूं मेरे दैनिक क्रियाकलापों पर आधारित है। 
इसमें मेरे प्रति मेरी विषाक्त सोच और मेरी उदासीनता है, मेरी नकारात्मकता और मेरा अविश्वास है, अब यूं कहूं कि मेरा चरित्र दागदार कैसे हैं, तो ये मुझे और मेरी सोच को एक निम्न स्तर प्रदान करता है, जो कि मुझे एक नकारात्मक सोच की जननी लगती है, अपितु प्रश्न फिर भी यहां नहीं उठता कि मेरा चरित्र दागदार है, परंतु यह मेरे दैनिक जीवन को इतना प्रभावित करती है, कि मेरा चरित्र एक संकीर्ण और नकारात्मक दृष्टि के रूप में मुझे अपने वातावरण में परिभाषित करने लगा है, मैं जो एक निम्न स्तर की सोच को लेकर चलने लगा और मेरा विचार अपने वातावरण में उपस्थित लोगों के प्रति जब विपरीत या यूं कहूं एक झूठ की लकीर बनने लगा जो कल्पनाओं में एक सागर से गहरा हो गया बस इसी एक नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण मेरा चरित्र खुद के लिए या मुझसे संबंधित या मुझसे जुड़े लोगों के सम्मुख  दागदार सा प्रस्तुत होने लगा और यही मेरे अहम और वहम का कारण बन गया,अहम या वहम समझना जरूरी था पर यह विषय मेरी नकारात्मक सोच ने कभी मुझे जरूरी नहीं समझने दिया और मेरा उदासीन रवैया मेरी नकारात्मकता और विषाक्त सोच ने मेरा चरित्र एक दागदार सा बना दिया। यह मेरे लिए एक घृणा का कारण बना जिससे मेरे प्रति लोगों का विचार बदलने लगा और मैं एक विषाक्त व्यक्ति बन कर रह गया।
:- उमेश राठौर।
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 मेरा चरित्र दागदार,

              (अनुशीर्षक में पड़े)
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 धन्यवाद। मेरा चरित्र दागदार है, यह विषय किसी विषयवस्तु से संबंधित नहीं है, अपितु इसके बहुत से प्रमाण मेरे दैनिक जीवन से या यूं कहूं मेरे दैनिक क्रियाकलापों पर आधारित है। 
इसमें मेरे प्रति मेरी विषाक्त सोच और मेरी उदासीनता है, मेरी नकारात्मकता और मेरा अविश्वास है, अब यूं कहूं कि मेरा चरित्र दागदार कैसे हैं, तो ये मुझे और मेरी सोच को एक निम्न स्तर प्रदान करता है, जो कि मुझे एक नकारात्मक सोच की जननी लगती है, अपितु प्रश्न फिर भी यहां नहीं उठता कि मेरा चरित्र दागदार है, परंतु यह मेरे दैनिक जीवन को इतना प्रभावित करती है, कि मेरा चरित्र एक संकीर्ण और नकारात्मक दृष्टि के रूप में मुझे अपने वातावरण में परिभाषित करने लगा है, मैं जो एक निम्न स्तर की सोच को लेकर चलने लगा और मेरा विचार अपने वातावरण में उपस्थित लोगों के प्रति जब विपरीत या यूं कहूं एक झूठ की लकीर बनने लगा जो कल्पनाओं में एक सागर से गहरा हो गया बस इसी एक नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण मेरा चरित्र खुद के लिए या मुझसे संबंधित या मुझसे जुड़े लोगों के सम्मुख  दागदार सा प्रस्तुत होने लगा और यही मेरे अहम और वहम का कारण बन गया,अहम या वहम समझना जरूरी था पर यह विषय मेरी नकारात्मक सोच ने कभी मुझे जरूरी नहीं समझने दिया और मेरा उदासीन रवैया मेरी नकारात्मकता और विषाक्त सोच ने मेरा चरित्र एक दागदार सा बना दिया। यह मेरे लिए एक घृणा का कारण बना जिससे मेरे प्रति लोगों का विचार बदलने लगा और मैं एक विषाक्त व्यक्ति बन कर रह गया।
:- उमेश राठौर।
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