किसी रोज यूं ही बेवजह आ किसी रोज ना जाने के लिए आ इश्क हो तो जूनून ए हद तक हो मुकम्मल हो तो राहत ए जाँ तक हो,,,,,, तेरा हर जुल्म सह लेंगे होठों से ना हम कुछ कहेंगे,,,,,, एक बार तो झूठा भरम देने को आ सुकून दिल को मिल जाए,,,,,