है ऐसी सुर्खी कोई जो इश्क़ का खत लिख सके? जहां साथ छोड़ देते सभी वहाँ साथ दिख सके? तख्त-ओ-ताज दुनिया की दौलत को मार दे ठोकर यार की इक हसीन मुस्कुराहट पे जो बिक सके? फसली बटेर सावन भादों की नदी के बहुत आशिक ज्येष्ठ की तपती धूप में विरला ही कोई टिक सके। लहु की सुर्खी है जो इश्क़ का खत लिख सके। सच्चा सज्जन ही लेखे की घड़ी में दिख सके। माया के रंग तमाम बेनूर है जिसके लिए दोस्त नूर की दौलत से भरपूर तेरे लिए वो लुट सके। कैसा भी हो मंजर कितना सख्त क्यों न हो समाँ दोज़ख की आग में भी वो आशना तेरे लिए जल सके। बना ले हमदम हमसफ़र हमराज उसको ए दिल जो तेरी मुस्कुराहट के पीछे छुपा गम समझ सके। है ऐसी सुर्खी कोई जो इश्क़ का खत लिख सके? जहां साथ छोड़ देते सभी वहाँ साथ दिख सके? बी डी शर्मा चण्डीगढ़ आशिक