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मानव/मानवता ------------------ चंचल मन की एक शिका

मानव/मानवता 
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चंचल मन की एक शिकायत मुझसे भी है, 
क्यों इतनी गंभीर बना डाली है सूरत ।
तुम मनुष्य हो,और दिलो मे धङकन जीवित ।
स्थिर गुमसुम ऐसे क्यों बैठे, जैसे मूरत ।
मानव के स्वभाव में बसती व्यवहारिकता ,
मेल-मिलाप का आधार हमारी सामाजिकता ।
फिर अपनी पहचान से बचकर भाग रहे क्यों, 
बिन मानवता मानव लगने लगता बदसूरत ।।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj मानव/मानवता
मानव/मानवता 
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चंचल मन की एक शिकायत मुझसे भी है, 
क्यों इतनी गंभीर बना डाली है सूरत ।
तुम मनुष्य हो,और दिलो मे धङकन जीवित ।
स्थिर गुमसुम ऐसे क्यों बैठे, जैसे मूरत ।
मानव के स्वभाव में बसती व्यवहारिकता ,
मेल-मिलाप का आधार हमारी सामाजिकता ।
फिर अपनी पहचान से बचकर भाग रहे क्यों, 
बिन मानवता मानव लगने लगता बदसूरत ।।
पुष्पेन्द्र पंकज

©Pushpendra Pankaj मानव/मानवता

मानव/मानवता #कविता