Nojoto: Largest Storytelling Platform

मेघ अरे वसुधे जरा बोलो , पिपासित सी प्रपीडित क्य

मेघ 

अरे वसुधे जरा बोलो ,
पिपासित सी प्रपीडित क्यों ।
तपा करती है हमेशा ही , 
बताने में प्रव्रीडित क्यो ।। 

हमेशा  ही चाहते घन
तुम्हे गर्मी न लगने दें ।
जरा सी भी अधिक पीडा ,
झमाझम फिर बरसनें दें ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
मेघ 

अरे वसुधे जरा बोलो ,
पिपासित सी प्रपीडित क्यों ।
तपा करती है हमेशा ही , 
बताने में प्रव्रीडित क्यो ।। 

हमेशा  ही चाहते घन
तुम्हे गर्मी न लगने दें ।
जरा सी भी अधिक पीडा ,
झमाझम फिर बरसनें दें ।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "

प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "